Monday, January 31, 2011

तड़पन


जख्मों में लिपटकर
पीड़ा से कराह रही हूँ
तेरा प्यार पाने को
मैं कब से भटक रही हूँ
दुखों के सागर में डूबकर
पाक समाधी पर अपनी
कब से तेरा इन्तजार कर रही हूँ
श्वेत वस्त्रों में लिपटी हुई
हाथ पसारे आज अपने
मैं आवाज़ देकर तुम्हे बुला रही हूँ
देर ना करो अब इतनी
भोर हो रही है
देख ना ले कोई मुझको
समाधी से उठते हुए
हाथों में चिराग लिए
पथ पर रौशनी फैलाये
निगाहें एकटक किये
कब से मैं तुम्हे बुला रही हूँ !

जुदाई

वह वह दिन जब मैं
बिछुड़ रही थी तुमसे
याद ना होगा तुमको
कैसा मातम मना रहा था
आकाश मेरी जुदाई पर
हवाओं का तेज बवंडर
एक तूफान बनकर
बार-बार आ रहा था
कंपकंपा रही थी हवा
सांय-सांय का आलाप लिए
आँसूओं में भीगी बैठी थी
तुम पत्थर बन लेटे थे
ना अफ़सोस था तुम्हें
मेरी जुदाई पर
ना माथे पर थी
शिकन की लकीर तुम्हारे
मेरी जुदाई पर

Pauvre Véronique


Véronique était petite
et innocente
quatre pieds grands seulement.
Elle tirait une rameau de saule dérrière.
Elle allait jusqu'a les pyrenées
trouver le roi appelé 'Henri'.
Les pyrenées était trés immense.
Il y avait beaucoup de pins
croissant autour les pyrenées.
L'ombre des arbres
a paru êtres trés sombre.
La scène  épouvantait
pourtant le chemin  était trés dangereux.
Véronique s'est decidée de trouver son Roi.
Elle a marché et a marché.
jusqu'a ce qu'elle est passé le sommet.
Elle est regardé l'autre côté
et a vu un trés beau Roi.
Son nom était Henri.
Il était grand
à peu prés sept pieds.
Son cheveux  étaient trés noir et bouclés.
Il  était trés beau et charmant.
Ses traits  étaient pointus
et son visage était plain d'orgueil.
Il  était impatient de voir Véronique.
Il est venu courant et haletant.
Il a cherché ça et la pour sa Véronique.
et enfin il l'a trouvée
au sommets des pyrenées.
Ô Dieu ! Vous êtes là !
'Hi' mon vieux a dit véronique
Je suis vraiment trés contente
de vous voir Henri
Oh, Vous ma chèrie !
Je suis aussi trés heureux
de vous voir Véronique.
Il l'a embrassé.
Et elle l'a perdu dans ses bras
Aprés quelque minutes
tous les deux ont perdu
dans chacun d'autres arment.
Vous êtes vraiment trés gentil
et solide, a dit - elle.
Je vous aime trés bien véronique.
Ils se sont rencontrées
et se sont parlée pour pleusieurs nuits.
Mais, un jour, pauvre Véronique
est partie est allée trés loin.
Et la fin de cette histoire
reste encore un mystère.

बंधनमुक्त

Power Divine Feminine



















तुम
विचित्र हो
अदभुत हो
मेरी सोच से परे हो
मेरे मुकाम से परे हो
तुम-
पागल, अनुबंधित
मूर्खता में पड़े रहकर
बंधन में बंधे रहकर
उसके रहस्य से अनजान हो
तुम -
जिन्दा निर्जीव हो
खुद से बेखबर हो
सृष्टी के नियम से अन्जान हो
तुम अज्ञानी हो
जनता का कल्याण कर
गौरव पाने की लालसा में जीते हो
अपने जिस्म से बंधनमुक्त होना चाहते हो
हरेक बंधन से मुक्त किया अब मैंने
भावों का बंधन खत्म किया
शरीर का बंधन तोड़ दिया
तुम चिरकालीन बंधनमुक्त हो गए
तुम तुम ही रह गए
मैं मैं ही रह गई !


गगन
























कब होगा वह गगन जहाँ मैं
पंख पसारे उड़ लूंगी
इन्द्रधनुष के सब रंगों को
अपनी बाँहों में भर लूंगी
पर -
यह तो सब सपना है
खुशियों की कीमत मुझको
अब देनी पड़ेगी भारी
हर अभाव की गोदों में
हम साथ-साथ पलते हैं
 कब रोऊँ, कब गाऊँ में
यह मुझको बतला दो
साँस है कितनी पथ कितना है
कोई तो बतला दो !

बादल
















प्यार
किसी गुफ्तुगू से कम नहीं
एक खेल बन चुका है
तुम जैसे खिलाडियों के लिए
क्यों की तुम-
हवाओं के साथ बार-बार
बादल बनकर आते हो
आसमान पर कुछ देर छाये रहकर
फिर उन्ही हवाओं के साथ
अदृश्य हो जाते हो
तुम प्यार का नाटक रचते हो
आसमान को हर बार फिर से
आने का प्रलोभन देकर
छोड़ जाते हो अकेला
तुम-
हवाओं का झोंका बनकर
सांय-सांय का आलाप लिए
अपने कृत्रिम प्यार का दुखड़ा
सुनाते हो इस जहाँ में
प्यार पाना चाहते हो तुम
फिर क्यों-
हर बार तुम धोखा देकर
रहस्य की दुनिया में विलीन हो जाते हो
आसमान को हर बार रुलाकर
तुम खूब हंस-हंस कर इस जहाँ में
उसके प्यार का मजाक उड़ाते हो
उसकी विवशता का उपहास करते हो
तुम हर बार उसे धोखा देते हो
झूठे वायदे देकर खुशहाल होते हो
शायद-
सच्चे प्रेम की परख नहीं तुममें
आसमान की सच्चाई से अनभिज्ञ हो
तुम पागल बन भटकते हो
प्यार पाने को इस जहाँ में !




अतीत























अतीत के गर्त में
छुपी हुई थी चांदनी
वक़्त के शिकंजे में
रो रही थी रागिनी
ना पता ना खबर -
दुनिया से हो बेखबर
शून्य में अब झांक रही
सुप्त पड़ी, लीन सी
निरूद्वेश्य हो भटक रही
शब्दों में तलाश करती
खींचती आड़े टेढ़े अक्षर
कटे पंखो ही उड़ चली
अतीत के गर्त में खो चली !

शाश्वत प्रेम


















सदियाँ बीत चुकी है
बात लोगों की जुबान पर
अब फीकी पड़ चुकी है पर
कविता ना भूल सकी
अपने पाक प्यार की बेबसी को
मर कर भी फिर आ गई
ले जनम इस दुनिया में
पाने अपने देवता के प्यार को
पत्थर का देवता तुम बन आये
लेने बदला मुझसे इस जनम में
अब और क्यों बदला ले रहे हो
मेरे पाक प्यार की बेबसी का
ना छोड़ो मुझे दर-दर की
खाने ठोकरें इस जहाँ में
घोंट दो गला मेरा फिर से
सुला दो इन मौत की वादियों में
मरकर भी कविता तुम्हारे
प्यार के नगमे सुनाया करेगी
इन मौत की वादियों में
पूजा करेगी पत्थर के देवता को
रोया करेगी दिल के आईने में
रखकर तेरी इस तस्वीर को
भटका करेगी तुझे पाने को
सृष्टी ही मिट जाये अब चाहे
मेरा प्यार ना मिटा सकेगा
कोई इस जहाँ के कण-कण से
सदियाँ ही गुजर जाएँगी
मेरी रूह भटका करेगी सदा
तेरा प्यार पाने को इसी तरह !

वेदना


बरबस रो पड़ती मेरी आँखों
के आगे सूनापन अथाह
शत -शत असफलताओं से है
अभिशापित मेरा मस्तक नत
कितने यत्नों से पाल रही
मैं अपने पागल प्राण अरे
जिसके सपने हो चुके यहाँ
कौन जाने कब के क्षत -विक्षत
उस गहरे नीले आसमान
पर चढ़ने की कोशिश करना
फिर भरकर चीत्कार प्रखर
अपनी हस्ती को बिखरना
वह  दूर क्षितिज, धुंधला अशांत
वैसे ही जैसे मेरा मन
यह बोझिल - सा कांपता पवन
वैसे ही जैसे मेरा पग
अपनी गहराई में सीमित
हिलोरे लेता हुआ जलधि
जब - तब भर उठता है कराह
जैसे मेरे सपनों का जग
मैं थकी हुई, मैं जीवन हारी
मैं नत -मस्तक, मैं जीर्ण -शीर्ण
विस्तृत जग के इस कोने में
अपने ही से दूर विलग
नित्य के इस मुरझाये मुख पर
युग - युग के खोये हुए
भावना - हीन, चेतना - हीन
गंभीर, मौन, स्थिर, सहमे से
नयन प्रायः हो जाते हैं बरबस
जैसे प्रतिपल धुंधला पड़ता अम्बर
मैं पूछ रही हूँ बोझिल सी
मैं क्या हूँ ? क्या अस्तित्व्य यहाँ ?
यह बनना और बिगड़ना क्या ?
सृष्टी का अनोखा खेल यह क्या  ?
क्यों इतना दुःख ? इतनी करुणा ?
क्यों है प्राणों में एक कसक ?
मैं पूछती हूँ तुमसे नत - मस्तक
असहाय, हतप्रभ, विवश, जर्जर !


अन्तरमन


मेरे अन्तरमन
जटिल है तेरा स्वराज
सरल है तेरी रचना
विरह की वेदना अथाह
कर चली जीवन को पूरा
व्यथा की पीड़ा है असहाय
अब-
मेरी अंतःकरण की आवाज़
धड़कते दिल की सांसें
जीर्ण-शीर्ण
निरुद्वेश्य हो
भटक रही
जीवन की सांसें गिन रही
अपनी जीवन की सुरचना कर
किसी की दस्तक की राह देख रही !

क्या जीवन इसी को कहते हैं ?


क्या जीवन इसी को कहते हैं ?
चारों तरफ रुदन का हो क्रंदन
सृष्टी का हो बंधन
दुविधा का हो विस्तार
महत्वाकांक्षाओं का हो उन्माद
हुआ जिसमें मुझको तेरा आभास
उठा उचे बनकर उत्साह
कसक होती गई थी विस्तृत
ना रुक सकी सरिता की लहर
पागल बनकर यह उन्माद
परिस्थितियों की विस्तृत परिधि में
चला आया था तेरे पास
कसक का ना था कोई अंत
हुआ क्षणिक भर का उल्लास
ह्रदय में समा गया आंतक
बन गया यह जीवन भार
कोई नहीं था मेरे पास
मैं हो गई दुनिया से दूर
तिल-तिलकर मर-मर जीने को
हो गई मैं बेबस मजबूर
मैं भोली नादान ना जान सकी
अब तक सृष्टी का रूपांतर
मजबूर हो गई सोचने पर
क्या जीवन इसी को कहते हैं ?

Sunday, January 30, 2011

भटकती रूह



तुम पत्थर के देवता हो
मैं सदियों से भटकती रूह हूँ
मैं दर्द से चीखती आवाज़ हूँ
तुम तक ना पहुँच पा रही हूँ
मैं बिलखते हुए गीतों का नगमा हूँ
तुम बन बेरहम कहाँ छुपे बैठे हो
मैं धार पर कटती पथ की भटकी रही हूँ
चलकर काँटों पर कबसे तुम्हे ढूंढ़ रही हूँ
मैं टूटते हुए साज़ में डूबी आवाज़ हूँ
तड़प-तड़प कर कबसे तुम्हे पुकार रही हूँ
मैं सदियों से प्यार तेरा पाने को भटकती रूह हूँ
इन बिखरते हुए गीतों की दर्दभरी आवाज़ हूँ !

कठोरतम प्रहार

Photo: Lightning at night over Walton, Nebr.
मेरे  
प्यार की तपस्या को देख
एक बार-
पृथ्वी भी चींख उठी
आसमान भी कांप उठा
सारा संसार रो दिया
पर तुम-
निष्ठुर बनकर
आकाश में छाए हुए
बादलों की ओट लेकर
सारा कृत्य देखते रहे
तुम--
उस क्षितिज के पार
हवाओं के साथ बार-बार
आते रहे
सारा नज़ारा देखते रहे
पर ना जाने क्यों
इस पृथ्वी पर आने से
फिर भी डरते रहे
मेरे प्यार की चीख को सुन
सारा जहाँ विस्मित हो उठा
पर-
तुम खोये रहे अनभिज्ञता में
सब कुछ जानकार भी अन्जान बने रहे
तुम -
इस कठोरतम प्रहार की दुनिया में
मेरे प्रेम की परीक्षा लेते रहे
पर -
फिर एक दिन पंहुँच गई
तुम्हारी ही दुनिया में ढूढने तुम्हे
ना पा सकी तुम्हे वहां भी
आ गयी फिर-
इस दुनिया में ढूढने तुम्हे
फिर वही प्यार का कठोरतम प्रहार सहने !

Thursday, January 27, 2011

चाह एक प्रेम की



चाह नहीं, मैं देह के
बंधन में बांधी जाऊं
चाह नहीं तुम्हारा प्रेम बन
गले की घंटी बन जाऊं
                                चाह नहीं, तुम्हारी बाँहों का
                                सहारा बन कदम बढाऊं
                                चाह नहीं, अपना प्रेम इज़हार  कर
                                अपने भाग्य पर इठलाऊं
चाह नहीं, अपने दामन में
खुशियों की गाथा भर लाऊं
चाह नहीं तुम्हारे आगोश में
सिर रख मर जाऊं
                                चाह नहीं, अपनी इच्छाओं को पूराकर
                                वासना का पुतला कहलाऊं
                                चाह नहीं, तुम्हरी दौलत को पा
                                अपना वजूद खो बैठूं
चाह नहीं, बहुपोश में बंध तुम्हारे
मैं मन ही मन रिझाऊं
चाह नहीं, मायाजाल में फंस तुम्हारे
प्यार को अपने कलंकित करवाऊं
                                  चाह नहीं अर्थी को कफ़न से ढक
                                  चिता पर लकड़ियों की सेज संजाऊं
                                  चाह नहीं शरीर को छू कर तुम्हारे
                                  मैं अपना जनाज़ा निकलवाऊ
चाह है अब,  तुम्हारी पग्धूली से
अपनी मांग सजा लूँ
चाह है अब, जीवन की अंतिम सांसें
तुम्हारे चरणों में अर्पित कर दूँ !

Soulmate



With each rhyme
With each rhythm
With each beat
With each breath
We are one
You captured my soul
I melt into you
Our hearts filled up with joy
Our bodies weep with heavenly joyous
We are eternal love
My sweetheart, My beloved
My soul, My spirit
My destiny, My eternity
I will love you endlessly
No matter where i am
No matter the distance
No matter the boundaries
Can not make my love apart
We are the one Soulmate
Forever throughout Eternity
I will find you
Your existence on this earth
No matter the consequence
No matter how far
Even in death we will be together
My search will remain for you
Our love,one life destined
Throughout Eternity One Soulmate.

गहराई





दिल की गहराईयों में बस गई
दिल के हर चैम्बर में घर कर गई
दिल के आईने में जड़वत रह गई
खुशनुमा तस्वीर आईना बन गयी
मेरे दिल के तारों को झनझना गई !
बदल कर गमगीन ना कर इसे
एक घोर आशंका की विषुद आह सी
ना कर अब इसे-
गम सता रहा है क्या मेरे हमदम
तेरी तस्वीर ग़मगीन रह गई
मेरी सांसे गतिहीन हो गई
खबर है क्या तुझे -
सांसों में तेरे बस्ती है मेरी सांसे
नही क्यों करते इन ग़मों में
शरीके-हयाते इस दिलरुबा को
हम तो घिरें रहते हैं
तुम्हारी यादों के दायरे में
जीतें हैं तुम्हारे ख्यालों में
मरतें है तुम्हारे ख्यालों में
रहतें हैं शेष अब
एक ही मन के द्वारे
एक ही मन की पगडण्डी
फिर दूरियों का मापदंड कैसा
पथिक का पथ अब सूना कैसा
इन ग़मों का दौर अब कैसा !

Tuesday, January 25, 2011

प्रार्थना !!


अपनी रचनाएँ लिखने से पहले मैं उन सभी लोगों का अभिनन्दन करती हूँ जिनकी प्रेरणा से मैं आप सभी लोगों तक पहुँच रही हूँ अपनी रचनाओं के माध्यम से. सबसे पहले अपनी उस प्रार्थना को प्रस्तुत करना चाहूंगी जिसे मैं बचपन से गाती हूँ . इस प्रार्थना को गाने से और सुनने से मेरे मन को विशवास और दृढ़ता मिलती है और जीने की प्रेरणा मिलती है. एक रौशनी की झलक दिखाई देती है अपने प्रति और अपने  ईश्वर के प्रति. क्योंकि जीवन का हर पथ सहज ही इतना सुगम नहीं होता है. उस पर चलने के लिए हमें अपने ईश्वर का सहारा लेना पड़ता है. मैं और मेरा आत्मविशवास अपने ईश्वर के सहारे हर पथ पर, हर परिस्थितियों में आगे बढ़ने की हिम्मत रखता है. वह हिम्मत जिसके सहारे हर मंजिल आसान हो जाती है. फिर कोई कुछ भी कहे कोई फर्क नहीं पड़ता है. क्यों की हर वस्तु चलायमान है, गतिमान है. उसे निरंतर आगे की और बढ़ते ही जाना है और बस बढ़ते ही जाना है कभी न रुकने के लिए फिर चाहे रास्ते में कितने ही विध्न्य क्यों न हो. ईश्वर की शक्ति के सामने हर कोई विफल है. अतः हमें इन ईश्वरीय शक्तियों को अपने ह्रदय में समेटे हुए निडर हो कर आगे की और बढ़ते ही जाना है. जहाँ न ईर्ष्या है न द्वेष, जहाँ हर तरफ पावनता की महक ही महक है. हर अन्धकार उजाला ही उजाला है. वहां सिर्फ कामयाबी की  फ़तेह ही फ़तेह है. अजहर,अमर, अटूट और अतुलनीय विशवास अपने ईश्वर के प्रति. इस सारे ब्रह्माण्ड में यही परम सत्य है जिससे कोई अछूता नहीं. ईश्वर की शक्ति वह उर्जा है जो की इन्सान को सकारात्मक रास्ते की तरफ ले जाती है. यह जीवन अति बहुमूल्य है, इन्सान का जन्म इतनी आसानी से नहीं मिलता है. इसका हर पल बहुत कीमती है अतः समय के रहते हुए चैतन्य हो जाने में ही भलाई है. हमारा हरेक कृत्य दूसरों की भलाई और खुशीयाँ देने के लिए होना चाहिए. यह प्यार सागर की तरह है उसे  यूँ ही बहते रहने दो. जो आनंद प्यार में समाया हुआ है वह इस जहाँ की वस्तुओं से नहीं तोला जा सकता है. प्रेम की अनुभूति ही इन्सान को परमात्मा तक ले जा सकती है. जिसने प्यार किया है और उसका अहसास किया है वही सच्चे अर्थों में ईश्वर के निकट पहुँच सकता है. मेरा रोम- रोम, मेरी रग-रग में बसा हुआ प्यार,मेरी उपासना अपने ईश्वर के नाम समर्पित है. सिर्फ एक ही नाम ओमकार और बस ओमकार. अब प्रस्तुत है अपने आराध्य ईश्वर की दिलोजान से स्तुति जिनकी अपार शक्ति ने मुझे जीने की एक झलक दिखाई.
                                                                                                                  ईतिश्री

मंजिल


एक ऐसी मंजिल पर
आ पहुंचा है अपना प्यार
की ना कर सकेगी -
मौत भी अब इसे जुदा
सदियों से तड़पती रूह
आ पहुंची है निकट आज तेरे
की ना मिला सकेगा खाक में
यह जहाँ भी इसे
गर ना मिल सके
इस जहाँ में भी हम तो -
लेते रहेंगे इसी तरह
एक दूजे को पा लेने को
ईश्वर भी ना रोक पायेगा
हम जनम लेते रहेंगे बार-बार
एक आस लिए आते रहेंगे
पृथ्वी पर इसी तरह
अपनी मंजिल पा लेने को !

Monday, January 24, 2011

आत्मा की पुकार


मेरी आत्मा की
पुकार
तुम तक ना पहुँच पाई
झानी बन
प्रेरणा का स्त्रोत ना बन पाई
ऊँचे उठ
आकाश को छू लेने की
भूख जाग्रत ना कर पाई
सफलता की
हर सीढ़ी पर देखने की
तमन्ना घर ना कर पाई
मेरा दुर्भाग्य
की-
तुम तक
मेरी सांसें ना पहुँच पाई !


Friday, January 21, 2011

मेरे दिलोजान



मेरी कविताओं की जान
तुम हो
मेरे धडकते हुए दिल की
सांसों में सिर्फ तुम हो
मेरे चेहरे की हर मुस्कान की
जान तुम हो
मेरे बढ़ते हुए हर कदम का
सहारा तुम हो
मेरे जीवन में बहार लाने वाले
देवता तुम हो
मेरी जीवन नैया पार कराने वाले
साहिल तुम हो
मेरे जीवन के प्रतिक्षण में खुशीयाँ देने वाले
प्रियतम तुम हो
मेरे नाम में अपना नाम जोड़ देने वाले
एक सिर्फ तुम ही तो हो !

Tuesday, January 18, 2011

माँ की ममता

आँखों से आंसू झलके जाये
रोकना चाहूँ रुक ना पाएं
घडी आई अब अंत समय की
मान लो अब बतियाँ मन की
छोड़ दो हर पल का अब गुस्सा
ईर्ष्या, द्वेष
और-
यह झगडा मन का
ज्ञानी बनकर
दीप जलाकर
ज्योत जगाकर
फैला दो जग में प्रकाश उजियारा
कर दो मेरा सपना पूरा
बदले में ना देना मुझको
एक भी पल का हिस्सा अपने
जीवन अपना सफल बनाना
कर देना जग में दिव्य उजाला !

प्यार की परिभाषा

तुम कहते हो
प्यार की परिभाषा होती है
मैं कहती हूँ
प्यार  दो रूहों की एक
पुरानी पहचान है
तुम देते हो इसे
त्याग का रूप
मैं देती हूँ इसे
तिल-तिल कर शलभ की भांति
प्रतिपल मर-मर मिट जाने का
पवित्रता का रूप
दो जिस्म एक जान के
मर मिट जाने का
प्रतीक !

मैं कौन हूँ ?


मैं कौन हूँ ?
एक प्रश्नवाचक चिन्ह
मेरा अस्तित्व्य
धूल से भरा हुआ
आग के अंगारों की तरह
चटक-चटक कर बिखर रहा है
एक अनजाने से पथ पर
मेरी लाश की शिनाख्त
ना कर पायेगा कोई
मेरी जिंदगी-
एक शून्य से घिरी हुई
इन तन्हाईयों में खोई हुई
चली जा रही है
एक अन्जाने से पथ पर
ना लौट आने को फिर कभी !

Friday, January 14, 2011

आत्मिक प्यार


तुमने तो
प्यार किया -
देखकर शरीर के सौंदर्य को 
जो की-
बन चुकता है राख एक दिन 
चिता की लपटों में आकर 
मैंने तो हर बार 
प्यार किया-
अनदेखी आत्मा की गहराईयों से 
मन की पवित्रता से 
हर बार-
मनमंदिर में रखा और पूजा 
एक ही देवता की तस्वीर को 
क्या पहचान सकोगे तुम कभी 
उस शरीर के सौंदर्य को 
जो की हर बार 
बन चुकता है राख़ 
चिता की लपटों में आकर 
निज को जो ना स्वयं पहचान सका 
राख़ के अंगारों को 
क्या कभी फिर से पहचान सकेगा ?
आत्माओं का मिलन तो होता है 
हर बार-
इस पृथ्वी पर नभ-तले 
चिरस्थाई  बन 
अमर हो जाने वाला 
यही तो एक नया रूप होता है 
इस प्यार का 
इस नीले गगन के साये के छाँव तले !



एकात्म



सदियाँ गुजर जाएँगी
लोग-
अपनी-अपनी बोलियों का
राग अलाप कर
छोड़ जायेंगे यह जहाँ तन्हा
पर-
मेरी रूह को ना कर सकेगा
कोई तुमसे जुदा
प्रकृति का कठोर प्रहार भी
सहकर भी
तेरे ही रग-रग में डूब
मैं बन बाती
तू बन दीप
डूबे रहेंगे सदा
सृष्टि के इस भीषण काल में
मैं और तुम
एक डोर में
बंधे रहेंगे सदा
तेज हवाओं का बवंडर
गर आया भी -
एक तूफान बनकर
ना कर सकेगा
कभी तुमसे दूर
तुम्हरी छवि से भी दूर
हमारी रूहें डूबी रहेंगी
एक दूजे में सदा
इसी तरह -
एक दीप-बाती बनकर !

Tuesday, January 11, 2011

करुणामयी सागर के देवता


तुम करुणा के उजागर रूप
मैं सागर की बहती तिनका
मेल कहाँ अब इन दोनों का
यह तो है जीवन का सपना
तड़प-तड़प कर जीवन जीना
तिल-तिल कर फिर मिट जाना
प्रचंडता का ओढे लबादा
वीभत्स रूप लिए अब लहरें
खेल रही अठखेलियाँ यहाँ
देख रहे हो मौन विवश
यह लहरों का अद्धभुत खेल यहाँ
पल-पल में लहरों का उठना
उठकर क्षणभर में मिट जाना
हे ! करुणामयी सागर के देवता
बता दो अब है कौन सहारा तिनके का
नित्य नयी बलखाती लहरों में
यह सांसें गिनते- गिनते
गए हैं कितने युग बीत
नहीं पर तिनके ने पाया
तुम्हारी करुणा का उपहार
नहीं अब गाया जाता हे देव !
यह गीत अनोखा जीवन का
थक गए सम्पूर्ण अविराम  चिन्ह
प्राणों में हैं कंपन का विस्तार
दे दो मुझको करुणा का उपहार
या-
करुणा में मिला लो मेरे अजहर, अमर झंकार !

इंतजारी

loneliness
इस सुहावने मौसम में
दिल उदास हो गया है
आज तेरी याद में
सारा जग सूना हो गया है
इन बर्फीली हवाओं में
दिल उजड कर रह गया है
तुम्हारी इंतजारी में
बड़ी उदास घडी हो गयी है
तुम इस तरह -
ठहर ना जाओ यूँ ही कहीं
मेरे दिल के तारे बुझे-बुझे हो गए हैं
तेरी राहों में फूल बिछाये
पथ पर तेरे इंतजारी में खडी हूँ
रास्ता ना भटक जाओ कहीं
हाथों में चिराग लिए मैं खडी हूँ
आवाज़ दे दो तुम कहीं से
तुम्हारे स्वागत के लिए मैं खडी हूँ
इस सुहावने मौसम में
उदास दिल को लिए मैं खडी हूँ !

क्षितिज के उस पार


कलियुग की इस
विस्तृत अवधि में
ना जान सकी हूँ अब तक
किसको कहते हैं
सत्य की परिभाषा
इस घुटती सी दुनिया में
मैं हूँ अशांत, दुनिया अशांत
जीवन अशांत, गति है अशांत
बस शांत मृत्यु का शून्य प्रहार
घिरता चला आता है अंधकार
जनहीन हो चुका अब नदी किनारा
अब चलना होगा मुझको
दूर यहाँ से
क्षितिज के उस पार
ना होगी वहां फिर
कलियुग की पहचान !