Thursday, January 27, 2011

गहराई





दिल की गहराईयों में बस गई
दिल के हर चैम्बर में घर कर गई
दिल के आईने में जड़वत रह गई
खुशनुमा तस्वीर आईना बन गयी
मेरे दिल के तारों को झनझना गई !
बदल कर गमगीन ना कर इसे
एक घोर आशंका की विषुद आह सी
ना कर अब इसे-
गम सता रहा है क्या मेरे हमदम
तेरी तस्वीर ग़मगीन रह गई
मेरी सांसे गतिहीन हो गई
खबर है क्या तुझे -
सांसों में तेरे बस्ती है मेरी सांसे
नही क्यों करते इन ग़मों में
शरीके-हयाते इस दिलरुबा को
हम तो घिरें रहते हैं
तुम्हारी यादों के दायरे में
जीतें हैं तुम्हारे ख्यालों में
मरतें है तुम्हारे ख्यालों में
रहतें हैं शेष अब
एक ही मन के द्वारे
एक ही मन की पगडण्डी
फिर दूरियों का मापदंड कैसा
पथिक का पथ अब सूना कैसा
इन ग़मों का दौर अब कैसा !

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