Monday, January 31, 2011

गगन
























कब होगा वह गगन जहाँ मैं
पंख पसारे उड़ लूंगी
इन्द्रधनुष के सब रंगों को
अपनी बाँहों में भर लूंगी
पर -
यह तो सब सपना है
खुशियों की कीमत मुझको
अब देनी पड़ेगी भारी
हर अभाव की गोदों में
हम साथ-साथ पलते हैं
 कब रोऊँ, कब गाऊँ में
यह मुझको बतला दो
साँस है कितनी पथ कितना है
कोई तो बतला दो !

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