Monday, January 31, 2011

बादल
















प्यार
किसी गुफ्तुगू से कम नहीं
एक खेल बन चुका है
तुम जैसे खिलाडियों के लिए
क्यों की तुम-
हवाओं के साथ बार-बार
बादल बनकर आते हो
आसमान पर कुछ देर छाये रहकर
फिर उन्ही हवाओं के साथ
अदृश्य हो जाते हो
तुम प्यार का नाटक रचते हो
आसमान को हर बार फिर से
आने का प्रलोभन देकर
छोड़ जाते हो अकेला
तुम-
हवाओं का झोंका बनकर
सांय-सांय का आलाप लिए
अपने कृत्रिम प्यार का दुखड़ा
सुनाते हो इस जहाँ में
प्यार पाना चाहते हो तुम
फिर क्यों-
हर बार तुम धोखा देकर
रहस्य की दुनिया में विलीन हो जाते हो
आसमान को हर बार रुलाकर
तुम खूब हंस-हंस कर इस जहाँ में
उसके प्यार का मजाक उड़ाते हो
उसकी विवशता का उपहास करते हो
तुम हर बार उसे धोखा देते हो
झूठे वायदे देकर खुशहाल होते हो
शायद-
सच्चे प्रेम की परख नहीं तुममें
आसमान की सच्चाई से अनभिज्ञ हो
तुम पागल बन भटकते हो
प्यार पाने को इस जहाँ में !




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