कलियुग की इस
विस्तृत अवधि में
ना जान सकी हूँ अब तक
किसको कहते हैं
सत्य की परिभाषा
इस घुटती सी दुनिया में
मैं हूँ अशांत, दुनिया अशांत
जीवन अशांत, गति है अशांत
बस शांत मृत्यु का शून्य प्रहार
घिरता चला आता है अंधकार
जनहीन हो चुका अब नदी किनारा
अब चलना होगा मुझको
दूर यहाँ से
क्षितिज के उस पार
ना होगी वहां फिर
कलियुग की पहचान !
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