अतीत के गर्त में
छुपी हुई थी चांदनी
वक़्त के शिकंजे में
रो रही थी रागिनी
ना पता ना खबर -
दुनिया से हो बेखबर
शून्य में अब झांक रही
सुप्त पड़ी, लीन सी
निरूद्वेश्य हो भटक रही
शब्दों में तलाश करती
खींचती आड़े टेढ़े अक्षर
कटे पंखो ही उड़ चली
अतीत के गर्त में खो चली !
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