Monday, January 31, 2011

शाश्वत प्रेम


















सदियाँ बीत चुकी है
बात लोगों की जुबान पर
अब फीकी पड़ चुकी है पर
कविता ना भूल सकी
अपने पाक प्यार की बेबसी को
मर कर भी फिर आ गई
ले जनम इस दुनिया में
पाने अपने देवता के प्यार को
पत्थर का देवता तुम बन आये
लेने बदला मुझसे इस जनम में
अब और क्यों बदला ले रहे हो
मेरे पाक प्यार की बेबसी का
ना छोड़ो मुझे दर-दर की
खाने ठोकरें इस जहाँ में
घोंट दो गला मेरा फिर से
सुला दो इन मौत की वादियों में
मरकर भी कविता तुम्हारे
प्यार के नगमे सुनाया करेगी
इन मौत की वादियों में
पूजा करेगी पत्थर के देवता को
रोया करेगी दिल के आईने में
रखकर तेरी इस तस्वीर को
भटका करेगी तुझे पाने को
सृष्टी ही मिट जाये अब चाहे
मेरा प्यार ना मिटा सकेगा
कोई इस जहाँ के कण-कण से
सदियाँ ही गुजर जाएँगी
मेरी रूह भटका करेगी सदा
तेरा प्यार पाने को इसी तरह !

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