Tuesday, January 11, 2011

करुणामयी सागर के देवता


तुम करुणा के उजागर रूप
मैं सागर की बहती तिनका
मेल कहाँ अब इन दोनों का
यह तो है जीवन का सपना
तड़प-तड़प कर जीवन जीना
तिल-तिल कर फिर मिट जाना
प्रचंडता का ओढे लबादा
वीभत्स रूप लिए अब लहरें
खेल रही अठखेलियाँ यहाँ
देख रहे हो मौन विवश
यह लहरों का अद्धभुत खेल यहाँ
पल-पल में लहरों का उठना
उठकर क्षणभर में मिट जाना
हे ! करुणामयी सागर के देवता
बता दो अब है कौन सहारा तिनके का
नित्य नयी बलखाती लहरों में
यह सांसें गिनते- गिनते
गए हैं कितने युग बीत
नहीं पर तिनके ने पाया
तुम्हारी करुणा का उपहार
नहीं अब गाया जाता हे देव !
यह गीत अनोखा जीवन का
थक गए सम्पूर्ण अविराम  चिन्ह
प्राणों में हैं कंपन का विस्तार
दे दो मुझको करुणा का उपहार
या-
करुणा में मिला लो मेरे अजहर, अमर झंकार !

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