Sunday, January 30, 2011

भटकती रूह



तुम पत्थर के देवता हो
मैं सदियों से भटकती रूह हूँ
मैं दर्द से चीखती आवाज़ हूँ
तुम तक ना पहुँच पा रही हूँ
मैं बिलखते हुए गीतों का नगमा हूँ
तुम बन बेरहम कहाँ छुपे बैठे हो
मैं धार पर कटती पथ की भटकी रही हूँ
चलकर काँटों पर कबसे तुम्हे ढूंढ़ रही हूँ
मैं टूटते हुए साज़ में डूबी आवाज़ हूँ
तड़प-तड़प कर कबसे तुम्हे पुकार रही हूँ
मैं सदियों से प्यार तेरा पाने को भटकती रूह हूँ
इन बिखरते हुए गीतों की दर्दभरी आवाज़ हूँ !

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