तुम पत्थर के देवता हो
मैं सदियों से भटकती रूह हूँ
मैं दर्द से चीखती आवाज़ हूँ
तुम तक ना पहुँच पा रही हूँ
मैं बिलखते हुए गीतों का नगमा हूँ
तुम बन बेरहम कहाँ छुपे बैठे हो
मैं धार पर कटती पथ की भटकी रही हूँ
चलकर काँटों पर कबसे तुम्हे ढूंढ़ रही हूँ
मैं टूटते हुए साज़ में डूबी आवाज़ हूँ
तड़प-तड़प कर कबसे तुम्हे पुकार रही हूँ
मैं सदियों से प्यार तेरा पाने को भटकती रूह हूँ
इन बिखरते हुए गीतों की दर्दभरी आवाज़ हूँ !
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