Friday, February 4, 2011

नगमें कुछ जिंदगानी के


गर आओ तो आ जाना
मेरी मौत का जनाजा उठने से पहले
कर देना अर्पित मेरी अर्थी पर
अपने ही कोमल कर कमलों से
यह खुशबू में लहलहाते पुष्प
दे देना अर्थी को कांधा
गर याद कभी आ जाये तब


नहीं तेरे कदम मेरी बिंदिया से कम
नहीं तेरी सांसे मेरी धडकनों से कम
नहीं तेरे ज़ज्बे मेरी सोच से कम
नहीं तेरी निगाहें मेरे नयनो से कम
अब साथ तपन की लौ बन जाने दे !


सूने-सूने मुरझाये बोझिल यह नयन
सारी खुशीयाँ सारे दर्द बराबर हम तस्लीम करेंगे
एक दिन तो तुम आओगे मेरे अंगना
यह सोच बेताब दिल को तसल्ली दे लेंगे !


लाशों के ढेर से हम मर कर जी उठेंगे
देखने तेरी दुनिया हम फिर से जन्म लेंगे !


तेरी दुनिया आबाद रहे
यही आखिरी ख्वाहिश है मेरी
तेरा आलम खुशीयों में झूमता गाता रहे
मेरे बरबादे मोहब्बत की दुआएं तेरे साथ रहे !


तस्वीर तेरी मेरा दिल बहला ना सकेगी
मैं बात करुँगी वेह खामोश रहेगी
सीने से लगा लूंगी, वह कुछ ना कहेगी
वह गुमसुम रह एकटक देखा करेगी
मैं बैठी आंसू बहाया करुँगी !


तूफानों से बचने के लिए
किनारों की जरुरत है
पतझड़ को सहने के लिए
बहारों की जरुरत है
जिंदगी हमारी यह कितनी
बेबसी से भरी होती है
जनाज़ा उठाने के लिए
सहारों की जरुरत होती है !


चलने को अब थक चुके हैं पैर
बढ़ने को रास्ता नज़र नहीं आता
तेरी मंजिल पे आके दम तोड़ देने को
दीदारे मोहब्बत का कारवां नज़र नहीं आता !


मेरी हर ख्वाहिश पे मेरा दम निकलता है
यह तो जिंदगी की आखिरी ख्वाहिश है
दम निकल कर तेरे क़दमों में पड़ा है !


तुम जब साथ रहते हो
अजीब सी भयवाने हयात में बदल जाती हूँ
ना पाकर नज़दीक अपने
गमे हयात में बदल आंसूयों में डूब जाती हूँ !


तुम राही हो उजालों के
अंधेरों से डरना नहीं
तूफानों से भयभीत होना नहीं
तीक्ष्ण प्रहारों से पीछे हटना नहीं
भीष्म ताप से जलना नहीं
युग-युगान्तरों से हैं हम तुम्हारे
इन राहों में यूँ छोड़ जाना नहीं !


मेरे मन के मीत तुम्ही हो
राग तुम्ही हो गीत तुम्ही हो
इतना मेरा जी ना जलाओ
प्यार का बंधन तोड़ ना जाओ
ऋतू आई है तुम भी आओ
फिर हम मिलकर रास रचाए
प्यार का बंधन तोड़ ना पायें !






जिंदगी

जिंदगी
मुझसे रूठ
भागती जा रही है
समय अब और
इन्तजार ना कर रहा है
शरीर टूट - टूटकर
छलनी हुए जा रहा है
सांसें भी अब कम
होती जा रही हैं
मौत की इन वादियों में
चिरकालीन सो जाना चाहती हैं
फिर तुम मुझसे रूठ
क्यों -
दूर चले जाना चाहते हो
मेरी जिंदगी
एक तूफान में
बार - बार तिनका बनकर
उड़ जाना चाहती है
शायद -
मुझसे रूठ चुकी है
आज यह जिंदगी मेरी !

अधरों के बोल

मेरी प्रकृति है सदा
झील के समान
कोमल, शांत, स्वछन्द
मेरे अधरों के बोल
सदा से रहे हैं सीमित
ना कोई छुपाव रहा है इनमें
ना ही बनावटी का भार
एक चुप्पी सी साधे
सदा से ही रहे हैं होंठ मेरे
कंपकंपा जाते हैं अक्सर
चुप्पी साधे यह होंठ मेरे
दुनिया खफां हो जाती है
देख इस खामोश चेहरे को मेरे
ऑंखें आंसूयों में भीगकर
व्याकुल हो उठती हैं बार-बार मेरी
देख दुनिया के इस बर्ताव को
मेरी इस खामोश प्रकृति के
सुन अधरों के बोलों को
आज दुनिया भी-
मुझसे खफा हो रही है मेरी ! 

कल्पना

कल्पना
मिल चुकी है खाक में
आज मेरी इस तरह
जैसे सूखे पत्ते
चुरमुर - चुरमुर करते हुए
बिखर कर खोये से
प्रथ्वी पर लीन पड़े हों
हवाओं के साथ बार -बार
अपनी मंजिल को पा लेने को
एक बार फिर से
इधर -उधर भटक रहे हैं
मेरी नन्ही सी फूलों जैसी
छोटी सी कल्पना
बहुत खूबसूरती में
ढलते हुए सौंदर्य का प्रतीक थी
पर -
वह जानदार होते हुए भी
बेजान थी !

एकांकीपन

यह कैसा था
पलभर का उल्लास भरा
हमारा यह मिलन
सुदबुध खो बैठ
दुनिया को भूल
एकांकीपन का हमारा था
यह मिलन
आखिरी रात का
चुप्पीभरा
वियोग में डूबा हमारा था
यह मिलन
बिछुडन का आभास
रूह की जुदाई
यह कैसा था
अश्रुकण में डूबा हमारा
यह मिलन !

वक़्त की तदबीर

वक़्त की तदबीर थी
रूप का सुदूर था
मोहब्बत की राह में
कभी हम मिले थे
गिला नहीं इस बात का
की -
हम कभी मिले थे
गिला इस बात का
मिलकर बिछुड़ गए थे
पिरो लिया वक्त को आंसूयों ने
अलफाजों को रख होंठों तक सीमित
जज़बातों का खात्मा करके
मौत के समीप ला पटका मुझको
कैसी है यह वक़्त की तदबीर
उड़ा ले चली मुझको यहाँ से ! 

वक़्त

तुम कहते हो
वक़्त हर जख्म को भर देता है
तुम भी अजीब हो
नाहक ही लोगों की बातों में आ जाते हो
वक़्त किसी जख्म को मरहम नहीं देता है
वक़्त के साथ जख्म और भी गहरे हो जाते हैं
पाक कर फोड़ो का रूप धर
फैलने  लगते हैं शरीर के चारों तरफ
नहीं कह सकता तब कोई
की-
वक़्त हर जख्म को भर देता है !

वियोग

वियोग में डूबी हुई
मैं अब तक
दुनिया का अनृत्य
ना देख पाई अब तक
देख - देख दुनिया की हरकत
धोखेधडी का जाल देखकर
हो गई मैं दुनिया से रुसवा

पत्थर के सनम

तुम
जानते हुए भी सब कुछ
पत्थर बनकर बैठे हो
कहना चाहते हो पर-
असलियत का पर्दा फाश
करने का साहस नहीं
आ पाया है अभी तुममे
रौशनी से परे होकर
तुम अंधकार में डूबे रहकर सदा
दुनिया को धोखा देना चाहते हो
तुम अज्ञात बने रहकर आज
यूँ इस तरह क्यों मुझे
मंझदार में डूबता हुआ
छोड़कर चले जाना चाहते हो
शायद-
मेरे पाक प्यार की दुनिया से
आज भी तुम अनभिज्ञ हो
पर-
सदियों का यह नाता हमारा
कैसे भुला जा सकेगा
आज सबसे परे होकर
मेरे प्यार से ना बन अन्जान
आज तू इस जहाँ के सुखो में
सदा से ही डूबता रहकर
अतीत की परिछाइयों से छुपकर
अब और अकेला ना छोड़
क्योंकि-
वक़्त के साथ ज़ख्म मेरे नहीं भरे जा सकेंगे
तड़पन बनकर मौत बन जाएगी
तेरा प्यार दिल से ना कर सकेगी कभी जुदा
अब चाहे खुदाई भी क्यों ना रूठ जाये !

Thursday, February 3, 2011

कब्र का धुआं






















तुरबते कब्र का धुआं
उठ रहा है धीरे-धीरे
विशालता का रूप लिए
धड़धड़ाहट,धमाका लिए
फट चुकी है कब्र
चिंगारियों का उठता बवंडर
छाया है बदल बनकर
उठ रहा है मानव शरीर
शवेत वस्त्रों में लिपटा हुआ !

Notre - Amour


Ne me laisse pas tout seul
Nous deux pour nous même seul
Notre amour est comme ciel
approchez - moi , l'amour pour le Dieu

अनुबंधित


तुम पागल
अनुबंधित
आसमान की उचाईयों को
छू चुकने के बाद भी
सृष्टी के नियमों से
अनजान बने रहे
तुम-
न्यूटन के तीसरे नियम से
अनभिज्ञ रहे
समझने की कोशश में असफल रहे
तुम अतीत के गर्त में
छुपी हुई चांदनी को
निहारते रहे
भविष्य की कल्पना में
वर्तमान को खोते रहे
तुम-
बेवकूफ हो
न्यूटन के तीसरे नियम को
आज तक ना समझ पाए
तुम-
उस मृग-मरीचिका के भुलावे में आकर
अंधकार में उसे ढूंढते रहे
तुम-
छलावे में छलते रहे
पग-पग पर बिखरते रहे
अंदर ही अन्दर टूटते रहे
अपना हमसफ़र ढूंढते रहे
न्यूटन के तीसरे नियम को
समझने की कोशिश में
अपना वर्तमान ख़त्म कर चले !







दीदारे इश्के मोहब्बत


कोई -
कब तक यूँ जीयेगा
भटकता हुआ तुम्हारी याद लेकर
ना सोचा यह कभी तुमने
देते रहे हो कदम-कदम पर
पीड़ा का नित्य नया रूप
करते रहे हो जीने को कट-कटकर
चलने को मजबूर
बेबसी का साया पहने
हम हो गए भीतर ही खोखले
दिल पर लगे छेद ने अब
ले लिया विशालता का रूप
तड़पन बढती जा रही अब
वक़्त का साथ ना दे पा रही अब
झूठा कहकर धिक्कारा है
मेरे पाक प्यार की दुनिया को
पर-
दिन दूर नहीं वह जब
पहचानेगा, रोयेगा, तडपेगा
इसकी एक झलक की मुस्कान को
पागल हो रहगुजर यों भटकेगा
जब होगी पहचान तुझे इस सत्य की
पर-
तब ना तुझे मिल पायेगी
यह सच्चाई तेरे प्यार की
क्योंकि-
तब वह जा चुकी होगी
अपने पाक प्यार की दुनिया में
जहाँ ना होगी अनर्त्य की परिछाई
वहां बंधन होगा सत्य का
वहीं फिर होगा दीदारे इश्के मोहब्बत का ! 

वक़्त























वक़्त
आज इन वादियों में
यूँ ही कहीं खो गया है
मरहूम बनकर इस
जहाँ के काँटों से
उलझ कर रह गया है
बेबसी के साये से
ना छुप पाया अभी
बादल बरस कर रह गया है
पाक प्यार की तस्वीर को
देख इस तरह आज
मातम मनाता रह गया है
आज-
मुझसे रूठ यह वक़्त
आंसूयों में ढलकर रह गया है

निशब्दता

आज
मैं बैठ अकेली
कल्पना कर रही थी
अपने भावी जीवन के
सपने संजो रही थी
एक छोटा सा कल्पना में
घरोंदा बना रही थी
अचानक-
आकाश में भयंकर गर्जना हुई
एक तेज रौशनी की सफेद लकीर खिंच गई
कहीं दूर बिजली टूट पड़ी
मेरे सपनों का महल बिखर गया
कल्पना अधूरी बनकर रह गई
मेरे सपनों का घरोंदा टूट कर बिखर गया
मैं बेजान निशब्दता में डूब बिखर गई !

Tuesday, February 1, 2011

अफसाना


तुम्हारा ख्याल गलत है की-
मेरा नाम जुदा हो जायेगा
तुम्हारे नाम के मिट जाने पर
सच्चाई यही है की-
मेरा नाम ना कोई कर सकेगा
तुम्हरे नाम से जुदा
सदियाँ ही गुजर जाएँगी
पर ना कर सकेगा
इंसा तो क्या
परमात्मा भी तुमसे जुदा
यही हकीकत है
बनी रहेगी सदियों तक
मेरा प्यार बन अफसाना
रह जायेगा दिलों में लोगों के
देवराज का अफसाना सुन विस्मित हो
कराह उठेगा सारा जहाँ 
ना मिलने का मातम मनायेगा सारा जहाँ
सदियों तक सुना करेंगे घर-घर में
यही अफसाना हमारे प्यार का !

तुम ही तुम

तुम
मेरी आराधना
मेरी पूजा
मेरी कल्पना
मेरी सदियों की
घोर तपस्या का
साकार रूप हो
तुम मेरे वही
सदियों पहले के
ह्रदय में समाए
मनमंदिर में रखी
देवता की तस्वीर का
साकार रूप हो
कैसे कह दूँ
की तुम -
वह नहीं हो !

अंदाज़


तुमने तो मेरे जीवन के
आयाम बदल दिए
नक़्शे उल्फत के
अल्फाज़ बदल दिए
जीने के हर
अंदाज़ बदल दिए
सुर्ख़ियों में बदल दिए
दायरे फ़िजायों के
रंगत उड़ चली
चेहरे की हर घडी
अब ना रास आई
यह जिंदगी मुझे !

अस्थिर श्रंखला


तुम्हारे
विचारों की अस्थिर
देख श्रखंला को
मैं रह गई एक बार
स्तब्ध
क्यों आ गई
यह अस्थिरता  की लड़ी
विचार श्रंखला में
ना सोच पाई इसे
मैं एक बार
पर मेरी -
आशाओं की लड़ी सिर्फ तुमसे है
यह जानकर भी
की -
तुम्हारी विचार - श्रंखला अस्थिर है
मेरी जिंदगी सिर्फ तुमसे है
तुम्हारी इस
बेजान अस्थिर श्रंखला से है !

जीवन की गति


जो कहानी अधूरी रह गई
जो लहर उठकर टूट गई
जो रशिम निहार से ढक गई
जिन हँसते अधरों पर आंसू की बूँद गिरकर मलिन कर गई
और जो सपना अपना ना हो सका
कुछ ऐसी ही रही अपने जीवन की गति !

"जब मन साथ नहीं देता, तो शरीर जीवन की यात्रा में कितनी दूर तक साथ देगा ?"