Friday, February 4, 2011

पत्थर के सनम

तुम
जानते हुए भी सब कुछ
पत्थर बनकर बैठे हो
कहना चाहते हो पर-
असलियत का पर्दा फाश
करने का साहस नहीं
आ पाया है अभी तुममे
रौशनी से परे होकर
तुम अंधकार में डूबे रहकर सदा
दुनिया को धोखा देना चाहते हो
तुम अज्ञात बने रहकर आज
यूँ इस तरह क्यों मुझे
मंझदार में डूबता हुआ
छोड़कर चले जाना चाहते हो
शायद-
मेरे पाक प्यार की दुनिया से
आज भी तुम अनभिज्ञ हो
पर-
सदियों का यह नाता हमारा
कैसे भुला जा सकेगा
आज सबसे परे होकर
मेरे प्यार से ना बन अन्जान
आज तू इस जहाँ के सुखो में
सदा से ही डूबता रहकर
अतीत की परिछाइयों से छुपकर
अब और अकेला ना छोड़
क्योंकि-
वक़्त के साथ ज़ख्म मेरे नहीं भरे जा सकेंगे
तड़पन बनकर मौत बन जाएगी
तेरा प्यार दिल से ना कर सकेगी कभी जुदा
अब चाहे खुदाई भी क्यों ना रूठ जाये !

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