कोई -
कब तक यूँ जीयेगा
भटकता हुआ तुम्हारी याद लेकर
ना सोचा यह कभी तुमने
देते रहे हो कदम-कदम पर
पीड़ा का नित्य नया रूप
करते रहे हो जीने को कट-कटकर
चलने को मजबूर
बेबसी का साया पहने
हम हो गए भीतर ही खोखले
दिल पर लगे छेद ने अब
ले लिया विशालता का रूप
तड़पन बढती जा रही अब
वक़्त का साथ ना दे पा रही अब
झूठा कहकर धिक्कारा है
मेरे पाक प्यार की दुनिया को
पर-
दिन दूर नहीं वह जब
पहचानेगा, रोयेगा, तडपेगा
इसकी एक झलक की मुस्कान को
पागल हो रहगुजर यों भटकेगा
जब होगी पहचान तुझे इस सत्य की
पर-
तब ना तुझे मिल पायेगी
यह सच्चाई तेरे प्यार की
क्योंकि-
तब वह जा चुकी होगी
अपने पाक प्यार की दुनिया में
जहाँ ना होगी अनर्त्य की परिछाई
वहां बंधन होगा सत्य का
वहीं फिर होगा दीदारे इश्के मोहब्बत का !
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